Secret Letter | सीक्रेट लैटर
Secret Letter सीक्रेट लैटर:- आज मैंने अपने बचपन को एक बार फिर से अनुभव किया। मैंने कुन्नूर से ऊटी के लिए टॉय ट्रेन पकड़ी और सारे रास्ते, एक बच्चे की भांति अपनी सीट पर आधे खड़े होकर, पहाड़ों से आती हवा को साँस में भरता रहा और गुज़रने वाले प्रत्येक दृश्य को हैरत भरी नज़र से देखता रहा। रेल लाइन घुमावदार थी और इंजन भाप वाला। रेल धीरे-धीरे, सीटी बजाते हुए नीलगिरी के पहाड़ी जंगलों से गुज़रती रही।
कुन्नूर से ऊटी लगभग 20 किलोमीटर दूर है और अगर रेल से जाएँ तो 40 मिनट लगते हैं। ऊटी, जिसका पूरा नाम उदग्मंडलम है, पश्चिमी घाट की पहाड़ियों में बसा एक मनोरम क़स्बा है। एक ज़माने में अंग्रेजों की ग्रीष्मकालीन प्रश्रय (summer resort) रही, ऊटी महकती हुई ठंडी जगह है जो कि अपनी चोकलेटों और चाय के लिए प्रसिद्ध है।
यद्यपि कुन्नूर बहुत ठंडा था, किंतु ऊटी सूर्य की अनुपस्थिति में, घने बादलों में एक फ्रीज़र की तरह प्रतीत होती है। कपड़ों की दो परतें, एक स्वेटर और एक जैकेट, भी मेरे शरीर को कंपकंपी से नहीं रोक सकते थे। रेल घूमते हुए जब ऊटी रेलवे स्टेशन पर पहुँची, तब जाके कहीं सूर्य देवता के दर्शन हुए।
शरीर को गर्म करने के लिए मैं बिना किसी सोच-विचार के क़स्बे में घूमने निकल पड़ा। बाज़ार की ऊँची चढ़ाई से बड़ा फ़ायदा हुआ। जब तक एक लोकल रेस्टोरेंट पर मैं रुकता तब तक मेरे सिर से पसीना टपकने लगा था। मैंने एक भरपूर दक्षिण भारतीय थाली खाई जिसमें चावल, रसम, साम्भर, पापड़, अचार और पायसम था।
एक बुज़ुर्ग व्यक्ति, जिनके माथे पर चन्दन का तिलक था, आए और आकर मेरे सामने बैठ गए। उन्होंने हल्के नीले रंग की चेक वाली शर्ट और चमचमाती सफ़ेद धोती पहनी हुई थी। उनके धुमैले (grey) घुँघराले बाल थे। संयम से खाना खाते हुए वो बुज़ुर्ग, अपने आप में बहुत शांत दिखाई दे रहे थे।
जब हमारी नज़रें मिलीं, मैं मुस्कुरा दिया। पलट कर वे भी मुस्कुरा दिए। अपना पापड़ तोड़ते हुए उन्होंने तमिल में मुझसे कुछ कहा। मैंने माफ़ी मांगते हुए उनसे पूछा क्या वो अंग्रेज़ी जानते हैं।
“लगता है आप ऊटी घूमने आए हैं। यहाँ आने का ये काफ़ी विचित्र समय है,” उन्होंने कहा। “दिसम्बर में यहाँ सबसे अधिक ठंड होती है।”
“हाँ, मैं इसी ठण्ड को अनुभव करना चाहता था।”
“आश्चर्य है, पर सुनकर ख़ुशी हो रही है,” उन्होंने कहा। “चूँकि आप ठंड में यहाँ आये हैं तो पयकारा (Pykara) झील ज़रूर घूमने जाइएगा”
मैंने उन बुज़ुर्ग का कहा मान लिया और पयकारा के लिए निकल पड़ा, जो कि मुख्य शहर से एक घंटे की दूरी पर है। मैं इस बार ठंडी हवाओं से भिड़ना नहीं चाहता था इसलिए एक कैब कर ली थी। मैंने खिड़की खोली और धुंधली हवा में साँस भरी। ठंड मेरे नथुनों में चढ़ गई थी और तभी मुझे उस किताब की याद आ गई जिसे हाल ही में मैंने पढ़ा था। विम होफ़ की द वे ऑफ़ द आइसमैन (Wim Hof’s The Way of the Iceman)।
विम होफ़ जिन्हें आइसमैन भी कहा जाता है, हॉलैंड के मशहूर खिलाड़ी हैं, जो कि जमा देने वाले तापमान को सहने की अद्भुत क्षमता रखते हैं। उनके नाम बर्फ़ के नीचे तैरने का और निर्वस्त बहुत देर तक बर्फ़ पर पड़े रहने का और बर्फ़ पर नंगे पाँव हाफ़ मैराथन दौड़ने का गिनीज़ वर्ल्ड रिकोर्ड है।
इस किताब में, विम बताते हैं कि बर्फ़ के साथ संसर्ग हमारी सेहत के लिए कितना फ़ायदेमंद है। और किस प्रकार से उन्होंने अपने शरीर को तैयार (श्वास प्रक्रियाओं और संचालित ठंड के संसर्ग से) किया, ताकि शरीर शून्य से नीचे के तापमान को सहने लायक़ गर्मी उत्पन्न कर सके। अत्यधिक ठंड में हमारा शरीर, अपने भूरे वसा (brown fat) को जलाता है और गर्मी उत्पन्न करता है।
यह हमारी उपापचयी प्रक्रिया (metabolism) को तीव्र करता है, रक्त प्रवाह को बढ़ाता है, हमारी नींद को गहराता है और हमारे ऊर्जा स्तर को बढ़ाने के साथ-साथ शरीर में सूजन को कम करता है। इसी कारण से धावक, दौड़ के बाद आइस थेरेपी लेते हैं और बर्फ़ के पानी में स्नान करते हैं।
यदि आप इस सर्दी में ठंडे पानी से नहाएँ, तो ग़ौर से देखने से मालूम होगा कि कैसे आपके श्वास की लय बदल जाती है। साँस तेज़ हो जाती है और शरीर तापमान की गिरावट से लड़ने के लिए गर्मी उत्पन्न करने लगता है। इससे पहले कि आप ऐसा करने जाएँ, ध्यान रहे कि शरीर को अधिक ठंड न लग जाए इसलिए सीमित ठंड में ही ऐसा करें।
हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के एक प्रमुख रिसर्चर डॉक्टर डेविड सिंक्लेयर (Dr David Sinclair) अपनी किताब लाइफ्स्पैन (Lifespan) में लिखते हैं कि बर्फ़ से हमारा संसर्ग, हमारी जीवनावधि में वृद्धि करता है क्योंकि रक्त वाहिकाओं के सिकुड़ने और बढ़ने से रक्तसंचार में सुधार होता है और शरीर की प्रत्येक कोशिका को नया जीवन मिलता है।
कैब राइड जल्द समाप्त हो जाती है। यात्रा के दौरान, ऐसा लगा जैसे ठंडी हवा ने समय के विचार को ही जमा दिया हो। मैं पयकारा झील पर पहुँचा, बादलों भरे आकाश के नीचे नीले पानी का वो फैलाव, और चारों ओर से काटती हुई बर्फ़ीली हवा। मैं सहसा पूरी तरह से कंपकंपा उठा और जैसा कि विम होफ़ ने कहा था,
मैंने गर्मी के लिए ज़ोर-ज़ोर से श्वास-प्रश्वास किया। एक दो लोकल परिवारों को छोड़कर जो कि पिकनिक के लिए आए हुए थे, वहाँ मैं ही अकेला टूरिस्ट था। मैंने अगले 40 मिनट तक उस बड़ी झील का चक्कर काटने के लिए एक नाव किराए पर कर ली। मैं हैरान था कि कैसे विम होफ़ नंगे पाँव बर्फ़ पर मीलों दौड़ सकते हैं। मैंने अपना हाथ पानी में डाला जो कि पिघली हुई बर्फ़ के जैसा था। दस्तानों से वंचित, शीतदंश के भय से मैंने अपनी उँगलियाँ तुरंत फिर से जैकेट में डाल लीं।
झील को चारों ओर से पहाड़ियों ने घेरा हुआ था। शिखर पर घने जंगल, दूर मंडराते हुए पंछी और भेड़िये अकेली नाव को घूर रहे थे। इन पहाड़ियों की तराई में, हिरणों के पिंजर पड़े हुए थे, जिन्हें भालुओं ने शिकार किया था और दूसरे शिकारी भी रात में टहलते देखे जा सकते थे। नाविक ने नाव को एक पहाड़ी के किनारे पर बाँध दिया और जब मैंने उससे पूछा कि क्या मैं पहाड़ी की तराई में घूम सकता हूँ, तो उसका जवाब था
“शिकारी घात लगाए हुए हैं।” मेरी साँस फड़कने लगी और शरीर डर से गरमा गया। मेरे ज़ेहन में मेरी 206 हड्डियों के ढेर का चित्र उमड़ पड़ा। मैंने नाविक को वहाँ से निकलने के लिए कहा। इस घड़ी मुझे ठंड की ज़रा फ़िक्र नहीं हुई। मैंने जैसे विम होफ़ के तरीक़े से इतर एक नया तरीक़ा खोज निकाला था। जान बचाने के लिए बस दौड़ पड़ो!
मैं देर शाम तक ही लौट सका, रास्ते में बारिश हो गई थी, इसीलिए मैंने उस रात ऊटी में ही रुकने का निर्णय किया। मैंने एक होस्टल बुक किया। दो कटोरे स्वीट कोर्न सूप के पी कर, अँगीठी के पास बैठकर ख़ुद को गर्माहट दी। इस रात, इस होस्टल में चार ख़ाली बिस्तरों के साथ मैं अकेला ही हूँ। अगर कोई खटका हुआ तो मैं हरगिज़ दरवाज़ा नहीं खोलने वाला। क्या पता कोई भालू मेरे गरम गोश्त को नोचने के लिए ही बेक़रार हो। ये बेतहाशा सर्दी मेरे जीवन की अवधि को फिर क्या ख़ाक बढ़ाएगी।
विदा लेने से पहले, जैसा कि रिवाज है, रात्रि के लिए एक कोट है: “मैं मरने से नहीं डरता। मुझे डर है तो न जी पाने का।
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