1 Best Story of Jabala Son Satyakaam | सत्यकाम जाबाल

Story of Jabala Son Satyakaam
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Story of Jabala Son Satyakaam | सत्यकाम जाबाल

सत्यकाम जाबाल,(Story of Jabala Son Satyakaam) महर्षि गौतम के शिष्य थे जिनकी माता जबाला थीं और जिनकी कथा छांदोग्य उपनिषद् में दी गई है। सत्यकाम जब गुरु के पास गए तो नियमानुसार गौतम ने उनसे उनका गोत्र पूछा। सत्यकाम ने स्पष्ट कह दिया कि मुझे अपने गोत्र का पता नहीं, मेरी माता का नाम जबाला और मेरा नाम सत्यकाम है।

मेरे पिता युवावस्था में ही मर गए और घर में नित्य अतिथियों के आधिक्य से माता को बहुत काम करना पड़ता था जिससे उन्हें इतना भी समय नहीं मिलता था कि वे पिता जी से उनका गोत्र पूछ सकतीं। गौतम ने शिष्य की इस सीधी सच्ची बात पर विश्वास करके सत्यकाम को ब्राह्मणपुत्र मान लिया और उसे शीघ्र ही पूर्ण ज्ञान की प्राप्ति हो गई।

Story of Jabala Son Satyakaam

1-नारी क्या है

नारी क्या है? एक ऐसी छाया जो विभिन्न रूप में फिर चाहे वो मां हो, पत्नी हो, बेटी हो या बहन हो, हर एक रूप में खुद को चिलचिलाती धूप में रखकर अपने परिवार को सुकून की छाया देती है। या फिर नारी वो है जिसे आज हम आधुनिक युग में देख रहे हैं, जो बिना किसी भय से आगे बढ़ती जा रही है। नारी की परिभाषा देना मुश्किल तो है लेकिन हमारे महान ग्रंथों में एक कथन जरूर दिया गया है।

2-नारी का सम्मान

कहते हैं “जहां नारी का सम्मान होता है, वहां ईश्वर का वास होता है”। लेकिन आज नारी को कितना सम्मान हासिल है इसकी जानकारी सभी को है। आज के युग में नारी का विभिन्न कारणों से इस्तेमाल हो रहा है लेकिन एक युग ऐसा भी था जब नारी के चरित्र का दिल से आदर किया जाता था।

3-सत्यकाम जाबाल की जीवन कथा

प्राचीन भारत इस बात का गवाह है कि नारी ने अपनी समझ से सभी कार्य सम्पन्न किए हैं। इसका बेहतरीन उदाहरण है छान्दोग्य उपनिषद् में वर्णित सत्यकाम जाबाल की जीवन कथा। सत्यकाम महर्षि गौतम के प्रिय शिष्य थे। वे एक ऐसी स्त्री के पुत्र थे जो यह बताने में असमर्थ थी कि उनके पिता कौन हैं।

4-छान्दोग्य उपनिषद्

छान्दोग्य उपनिषद् में लिखी गई एक पौराणिक कथा के अनुसार जबाला नाम की एक स्त्री थी। यह स्त्री अपनी जीविका ग्रहण करने के लिए समृद्धशाली परिवारों में परिचारिका का कार्य करती थी। एक परिवार में काम करते हुए ही जबाला को यौवन वयस में पुत्र की प्राप्ति हुई थी, जिसका नाम उसने सत्यकाम रखा। एक दिन सत्यकाम ने अपनी माता के सामने गुरुकुल में शिक्षा ग्रहण करने के लिए आज्ञा मांगी।

5-जबाला बेहद प्रसन्न हुई

अपने पुत्र के इस फैसले से जबाला बेहद प्रसन्न हुई और उसे फौरन आश्रम जाने के लिए अनुमति प्रदान की। लेकिन जाने से पहले सत्यकाम ने अपनी माता से एक ऐसा सवाल पूछा जो सत्यकाम के जीवन से जुड़ा था और जिसे आश्रम जाने से पहले जानना उसके लिए अति आवश्यक था।

6-सत्यकाम ने प्रश्न किया

सत्यकाम ने प्रश्न किया, “माता जब मैं महर्षि के आश्रम में शिक्षा ग्रहण करने के लिए जाऊंगा, तो गुरू जी सबसे पहले मुझसे मेरा गोत्र पूछेंगे। लेकिन मैं नहीं जानता कि मेरा गोत्र क्या है। मैंने तो आज तक अपने पिता को देखा भी नहीं। तो आप ही बताइए कि मेरे पिता जी कौन थे और उनका क्या है?”

7-गोत्र नहीं जानती

पुत्र की यह बात सुनकर जबाला एक समय के लिए तो चिंतन में पड़ गई फिर उसने जवाब दिया, “पुत्र जब तुम्हारा जन्म हुआ तब मैं एक परिवार में कार्य करती थी। वहां कार्य में व्यस्त होने के कारण कभी ऐसे परिस्थिति ही उत्पन्न ना हो सकी कि मैं तुम्हारे पिता जी से उनका गोत्र पूछ पाती। तुम्हारे पिता जी भी इतने व्यस्त रहते कि कभी बात करने का मौका नहीं मिला।“

8-सत्यकाम असंतुष्ट हो गए

माता के इस जवाब से सत्यकाम असंतुष्ट हो गए। उन्हें यह चिंता सताने लगी कि यदि उन्होंने गुरुकुल में अपना गोत्र ना बताया तो उन्हें वहां दाखिला हासिल नहीं होगा। तब अपने पुत्र का उदास चेहरा देख जबाला बोली, “तुम मेरे पुत्र हो। मैंने स्वयं तुम्हारा पालन-पोषण किया है। तुम आश्रम जाओ और वहां जाकर गुरू जी से कहना कि तुम जबाला के पुत्र हो। और अपना नाम भी सत्यकाम जाबाल ही बताना।“

9-गुरुकुल की ओर प्रस्थान किया

यह बात सुन सत्यकाम ने गुरुकुल की ओर प्रस्थान किया। वे महर्षि गौतम के आश्रम गए जहां पहुंचने पर महर्षि द्वारा सबसे पहले उनका गोत्र पूछा गया। यह भारत में प्राचीन काल से चले आ रहे आश्रमों की प्रथा थी कि किसी भी शिष्य को अपने गुरुकुल में दाखिला देने से पहले उसका गोत्र पूछा जाता था।

10-गुरु द्रोण और कर्ण

यदि उसका गोत्र उस विशेष आश्रम में रहने के काबिल है, तभी उसे लिया जाता था अन्यथा उसे वहां से चले जाने का आदेश दे दिया जाता था। इसका महान उदाहरण आप महाभारत काल में गुरु द्रोण द्वारा कर्ण को शिक्षा ना देने के फैसले से देख सकते हैं। कर्ण जो कि सूत पुत्र कहलाते थे, उन्हें गुरु द्रोण द्वारा कुशल एवं बलशाली होते हुए भी शिक्षा देने से मना कर दिया गया था।

11-महर्षि गौतम ने फैसला लिया

लेकिन सत्यकाम कथा के संदर्भ में महर्षि गौतम ने जो फैसला लिया उसने प्राचीन इतिहास की दिशा को ही बदलकर रख दिया। जब महर्षि ने सत्यकाम से उनका गोत्र पूछा तो उन्होंने ठीक वैसे ही जवाब दिया जैसा कि उनकी माता से समझाया था। उन्होंने साफ लफ्ज़ों में खुद को जबाला का पुत्र बताया और कहा कि यही उनका गोत्र है।

12-गुरुकुल में आने दिया

सत्यकाम का उत्तर सुन महर्षि को हैरानी हुई लेकिन फिर उनकी सच्चाई की प्रशंसा करते हुए उन्होंने सत्यकाम को गुरुकुल में आने दिया। उनका मानना था कि एक सच्चा इंसान सभी गोत्र बंधनों से ऊपर है। वे बोले, “’इतना स्पष्टवादी बालक ब्राह्मण के अतिरिक्त और कौन हो सकता है?” फलस्वरूप आचार्य ने सत्यकाम को ब्राह्मण का गोत्र देते हुए स्वीकार लिया।

13-सत्यकाम का उपनयन कराया

उन्होंने आश्रम में पूरे विधि-विधान के साथ सत्यकाम का उपनयन कराया। कुछ दिनों बाद आचार्य ने आश्रम की गौवों में से 400 दुर्बल गौवें छांटी और सत्यकाम को उन्हें चराने के लिए सौंप दिया। गुरू जी का आदेश मानते हुए सत्यकाम ने यह कार्य स्वीकार किया और उनसे कहा कि वह तभी वापस लौटेंगे जब इन गायों की संख्या एक सहस्त्र यानी कि एक हजार हो जाएगी। इतना कह कर वे जंगल की ओर रवाना हो गए।

14-400 दुर्बल गौवें

सत्यकाम बहुत समय तक जंगल में रहे। उन्होंने पूरी निष्ठा एवं श्रद्धा के साथ उन गौवों का ध्यान रखा। उन्हें समय पर चारा देना, उनकी देखभाल करना, उन्हें जंगली जानवरों से बचाना तथा उनके स्वास्थ्य का पूरा ख्याल रखना ही सत्यकाम का धर्म था। सत्यकाम की सच्ची तपस्या से प्रसन्न होकर दिग्व्यापी वायु देवता एक सांड का रूप धारण कर उनके सामने प्रकट हुए।

15-तपस्या पूर्ण हुई

वे बोले, “सत्यकाम, तुम्हारी तपस्या पूर्ण हुई। मैं तुम्हारे कार्य से अत्यंत प्रसन्न हूं। गौवों की संख्या एक सहस्त्र हो गयी है, अत: अब तुम आश्रम जा सकते हो। सत्यकाम सहस्त्र गौवों को लेकर आश्रम की ओर चल दिए और वहां पहुंचते ही अपने आचार्य के चरण स्पर्श कर अपने कार्य में सफल होने का संदेश दिया।

16-आंखों में एक तेज

सत्यकाम को सफल देख तथा उसकी आंखों में एक तेज देख कर आचार्य बेहद प्रसन्न हुए। अब सत्यकाम ने आचार्य से उसे परमात्मा का ज्ञान देने का आग्रह किया। जिस पर आचार्य बोले कि तुम अपना ज्ञान प्राप्त कर चुके हो। अब तुम्हें मेरे द्वारा सत्य का ज्ञान प्राप्त करने की कोई आवश्यकता नहीं है। लेकिन यह बताओ कि तुम्हें किसने सत्य का ज्ञान दिया।

17-परमात्मा का ज्ञान

सत्यकाम ने वन में किस तरह मेहनत करते हुए उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर विभिन्न देवी-देवताओं के प्रकट होने की बात बताई। उसने बताया कि इन देवताओं द्वारा उसे समय-समय पर ज्ञान प्राप्ति हुई। उसने बताया कि इन महान देवों ने ही उसे ब्रह्म का ज्ञान दिया। लेकिन फिर भी वह अपने आचार्य से परमात्मा का ज्ञान हासिल करना चाहता है।

18-सदियों पुरानी रीति को बदला

छान्दोग्य उपनिषद् में वर्णित सत्यकाम की कथा इस बात का उदाहरण है कि एक स्त्री जो यह भी नहीं जानती थी कि उसके पुत्र का पिता कौन है, उसकी संतान को महान महर्षि द्वारा अपनाया गया। उसकी संतान के लिए आचार्य ने गुरुकुल की सदियों पुरानी रीति को बदला और उसे स्वयं ब्रह्मचारी का गोत्र दिया।

19-स्त्री भोग का साधन

यह कहानी हमें बताती है कि नारी अपनी समझ से किस प्रकार कार्यों को सफल बनाती है लेकिन आज की नारी में एक बड़ा परिवर्तन आया है। यह बात प्राचीनकाल में भी मौजूद थी, जब स्त्री को मात्र एक भोग का साधन समझा जाता था। पुरुष उसे चारदीवारी के भीतर रखते और उसे किसी भी तरह के सवाल करने की अनुमति हासिल नहीं थी।

20-आज के युग में अंतर

आज भी नारी को भोग प्राप्ति के लिए इस्तेमाल जरूर किया जाता है लेकिन उस युग और आज के युग में एक बड़ा अंतर आ गया है। यह अंतर है नारी की सोच का। वह आज भी अपने शरीर की बलि देकर खुद को पुरुष का शिकार होने देती है लेकिन वह जानती है कि किस प्रकार से शिकार बनने के बाद आगे बढ़कर उस पुरुष को अपना शिकार बनाना है।

21-वह नारी कहीं खो गई

वह नारी जिसके लिए अपनी गरिमा से बढ़कर कुछ नहीं है, आज के आधुनिक युग में वह नारी कहीं खो गई है। आज नारी बदल गई है। बेशक अपने सशक्तिकरण के लिए, लेकिन नारी जिस प्रकार से अपना इस्तेमाल कर रही है, वह प्राचीनकाल से पूर्ण रूप से भिन्न है।

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